नकल ही सही, पंडित नेहरु से प्रधान सेवक बनने की प्रेरणा तो ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर दिये गये पहले भाषण में खुद को देश का प्रधानमंत्री नहीं प्रधान सेवक कहा। जबकि यह लाइन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की थी। जिसे उन्होंने 15 अगस्त 1947 को दिये गये भाषण के दौरान कहा था। मलाल इस बात का है कि मोदी ने जहां पंडित नेहरु के भाषण की नकल की वहीं अपने भाषण में उनका जिक्र तक करने से परहेज किया।
स्तंभकारों का कहना था कि नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर दिया गया भाषण परम्परागत या यथास्थितिवादी नहीं था। लेकिन, पूरे सम्मान के साथ, मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि मैं उनके निष्कर्ष से असहमत हूं। उनका भाषण पूरी तरह से परम्परागत या यथास्थितिवादी था।
नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत ‘‘सभी पूर्व सरकारों और पूर्व प्रधानमंत्रियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए की जिन्होंने आज के भारत को ऊंचाइयों तक पहुंचाने और गौरव दिलाने का प्रयास किया।’’
यह परम्परागत या यथास्थितिवाद नहीं था तो और क्या था? एक राजनेता की तरह बोलने की कोशिश करते हुए उन्होंने हर पूर्व प्रधानमंत्री, हर सरकार की विरासत को याद किया। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2013 में दिये गये अपने भाषण में राष्ट्र के निर्माण में योगदान देने वाले पूर्व प्रधानमंत्रियों का नाम लिया। इसलिए वर्तमान प्रधानमंत्री ने जो कहा उसमें कुछ भी नया नहीं है।
नरेंद्र मोदी खुद की और अपने मत की प्रशंसा करने से कभी नहीं चूकते। अपने चुनावी भाषणों की तरह ही वे अपनी विनम्र मूल की परम्परा को भी याद कर रहे थे।
उदाहरण के लिये ‘‘एक छोटे से शहर से आने वाले गरीब परिवार के बालक को लाल किले की प्राचीर पर भारत के तिरंगा के सामने सर झुकाने का अवसर मिला है।’’
एक और उदाहरण: ‘‘मैं दिल्ली के लिये बाहरी हूं, मैं दिल्ली का रहने वाला नहीं हूं। मुझे इस जगह के प्रशासन और काम के बारे में पता नहीं है। मैं इस जगह के कुलीन वर्ग से काफी अलग-थलग कर दिया गया हूं...’’
‘दिल्ली के कुलीन वर्ग’ पर निशाना साधते हुए खुद को विनम्र मूल का और बाहरी बताना निश्चित रूप परम्परा को याद करना नहीं है।
चुनाव अभियान के दौरान लाल किले की अनुकृतियां अक्सर उनके मंचों की पृष्ठभूमि में दिखायी देती थीं और उनके समर्थकों द्वारा मुगल वास्तुकला की इस उत्कृष्ट कृति का विशाल मॉडल उपहार में दिया जाता था।
प्रधानमंत्री ने खुद को जनता का सेवक बताया। लेकिन यह लाइन उनकी मूल लाइन नहीं है। उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की ‘भारतीय लोगों के प्रथम सेवक’ वाले भाषण की सिर्फ नकल की है। यह भाषण 15 अगस्त 1947 को राष्ट्र के नाम अपने पहले प्रसारण में दिया गया था।
‘‘प्यारे देशवासियों, भारत की सेवा करने का यह मेरा सौभाग्य है और यह भारत की स्वतंत्रता के कई वर्षों के संघर्ष के कारण संभव हुआ है। आज मैं पहली बार आधिकारिक तौर पर भारतीय जनता का प्रथम सेवक बनकर आपकी सेवा और बेहतरी के संकल्प के साथ आपको संबोधित कर रहा हूं। मैं यहां हूं क्योंकि आप चाहते हैं इसलिये मैं यहां तब तक रहूंगा जब तक आप अपने विश्वास के साथ मुझे यह सम्मान देना चाहेंगे।’’ - पंडित जवाहर लाल नेहरु
हालांकि यह सराहनीय था कि एक प्रधानमंत्री ‘राष्ट्रीय त्योहार’ पर ‘राष्ट्रीय चरित्र’ के निर्माण के बारे में बात कर रहा था, अपने खुद के कार्यों को आदर्श बताने से कहीं दूर था। आदर्शवाद का उपदेश देने वाले मोदी खुद यह भूल गये कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ स्नूपिंग और फर्जी मुठभेड़ों सहित कम से कम 15 आपराधिक मामले दर्ज हैं। उल्लेखनीय है कि खुद प्रधानमंत्री को गुजरात में 2002 में हुए दंगों में शामिल होने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। जो लोग ऐसा मान रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बहु-प्रचारित ‘क्लीन चिट’ दे दी है, वे गलत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केवल एसआईटी को नियुक्त किया है जिसने अहमदाबाद की मेट्रोपोलिटन अदालत के मुताबिक उनके खिलाफ ‘कोई अभियोज्य सबूत’ ना मिलने की रिपोर्ट दी है। इसलिए उनके काम आदर्श से कोसों दूर हैं और शायद ही किसी भी ‘राष्ट्रीय चरित्र’ की प्रेरणा देते हैं।
यह जानकर बेहद खुशी हुई कि मोदी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और हिंसा के बारे में चिंतित है। उन्होंने समाज और माता-पिता द्वारा अपने बेटों पर रोक-टोक ना करने और केवल बेटियों से सवाल करने के पाखंड का मार्मिक बिन्दु उठाया जिसकी उनके सबसे कठोर आलोचकों द्वारा भी सराहना की गयी। हालांकि उनके आलोचकों को उनसे सवाल करने का पूरा अधिकार है कि उनकी सरकार में बलात्कार के आरोपी मंत्री पर उनका क्या रुख है। मंत्रिपरिषद के एक प्रमुख चेहरे निहाल चंद पर जघन्य बलात्कार में लिप्त होने का आरोप है। दान की शुरुआत अपने घर से होती है प्रधानमंत्री जी। क्या मोदी जी बलात्कार के आरोपी अपने मंत्री को निकाल कर मिसाल कायम करेंगे?
मोदी ने अपने भाषण में ‘अहिंसा’ के फायदों पर बल दिया। यहां तक कि माओवादियों और आतंकवादियों को हिंसा का रास्ता छोड़ने का मजबूत रास्ता बताया। मुझे गर्व होता है कि मेरे देश के प्रधान मंत्री सही बात कर रहे हैं, हालांकि व्यक्तिगत तौर पर और राज्य के मुखिया के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2002 के गुजरात सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन नहीं किया। ना ही अपने राज्य में ‘निर्दोष’ लोगों के खिलाफ दर्जनों फर्जी मुठभेड़ों को रोका।
काम शब्दों से अधिक जोर से बोलते हैं। मुझे श्री मोदी से एक साधारण सवाल पूछना है। माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को सत्ता संभालने के 45 दिनों के बाद ही जमानत पर क्यों रिहा कर दिया गया? क्या वे हिंसा फैलाने के दोषी नहीं हैं? मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी संजीव बालियान आपके मंत्रिमंडल में क्यों हैं? श्री मोदी ने देशवासियों से अनुरोध किया है कि 10 साल तक हिंसा की सांप्रदायिक घटनाओं पर रोक लगा दें। यह अपने आप में एक स्वागत योग्य बयान है। आप गहराई से देखें तो इसके निहितार्थ हैं इसमें विभिन्न परतें हैं। क्या श्री मोदी का यह मतलब है कि 10 साल के बाद हिंसा जारी रह सकती है? यह विसंगत, निष्कर्ष रहित लेकिन एक संभावित प्रश्न है। अधिक प्रासंगिक प्रश्न यह है कि श्री मोदी ने उत्तर प्रदेश में भयावह स्थिति शांत करने के लिए क्या किया? मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सांप्रदायिक हिंसा की 600 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में से 60 प्रतिशत उन 10 निर्वाचन क्षेत्रों के पास हुईं जहां इस साल के अंत में विधानसभा उप चुनाव होने वाले हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है इस बात का जवाब दिया जाना चाहिये कि वहाँ हिंसा कौन फैला रहा है। इतिहास गवाह है कि इस देश में सांप्रदायिक तनाव की कोई भी घटना नरेंद्र मोदी के मातृ संगठन -आरएसएस की भागीदारी के बिना नहीं हुई। यह कम से कम आजादी के बाद के परिदृश्य में तो सच है।
हमारे प्रधानमंत्री वित्तीय समावेश के बारे में चिंतित हैं हम इस तथ्य का स्वागत करते हैं। ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ शुरू की गई है। यह योजना पिछली यूपीए सरकार द्वारा पूरी तरह से शुरु की गयी थी। इसे ‘स्वाभिमान’ का नाम दिया गया था। 2011 में शुरु हुई इस योजना में ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएं प्रदान की जाती थीं। 2004 से 2012 तक, 33करोड़ से अधिक व्यक्तिगत बैंक खाते भारत में खोले गए हैं। यह इस तरह की योजनाओं के द्वारा ही संभव था। श्री मोदी ने अपनी क्षमता को जानते हैं इसलिये उन्होंने इस पर ‘प्रधानमंत्री’ की मोहर लगाकर योजना का नाम बदल दिया।
यूपीए सरकार की ऐसी कई सारी पहलें हैं जिनका बस नवीनीकरण कर दिया गया है। उनका जोर युवाओं के कौशल विकास पर है जिसे यूपीए सरकार ने पहले ही राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन शुरू करके लागू कर दिया था। प्रक्रिया को सरल और अधिक लक्षित करने के उद्देश्य से (पीपीपी आधार पर) राष्ट्रीय कौशल विकास निगम पहले से ही है।
जब वे ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘ अभिजात वर्ग के लिए ही नहीं गांवों के लिए ब्रॉडबैंड’ की बात करते हैं तो इसे भी यूपीए सरकार द्वारा पहले ही लागू किया जा चुका है। 2004 में केवल 47.5 लाख लोगों को तक ही ब्रॉडबैंड और इंटरनेट सेवाओं की पहुंच थी। लेकिन 2012 तक यह संख्या 4858.6 लाख लोगों तक पहुंच चुकी है जो इन सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।
इसी प्रकार आदर्श ग्राम का निर्माण करने वाली ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ का नाम बदल कर ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ कर दिया गया है।
श्री मोदी ने सफाई और स्वच्छता पर जोर दिया है। यूपीए ने ‘निर्मल भारत अभियान’ नामक विशाल स्वच्छता अभियान शुरू किया था। श्री मोदी ने सिर्फ इसका नाम बदल कर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ कर दिया है। 1000 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान इसी के लिए किया गया था।
ये बातें बहुत साधारण हैं और इस लेख को थोड़ा उबाऊ भी बना देती हैं, लेकिन इन सभी बिंदुओं में से प्रत्येक का उल्लेख करना इसलिये जरुरी है कि हम यह बता सकें कि श्री मोदी और उनकी सरकार भारत के लिए कुछ भी नया नहीं पेश कर रही है।
यह आश्चर्यजनक है कि श्री मोदी ने भ्रष्टाचार के खात्मे के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया, चीन की घुसपैठ और पाकिस्तान द्वारा लगातार युद्धविराम का उल्लंघन किये जाने के बारे में भी चुप्पी साधे रखी।
महंगाई पर भी एक शब्द नहीं।
अंत में, यह बताना भी जरुरी है कि श्री मोदी ने अपने भाषण में ‘अच्छे दिन’ जिसका प्रचार भारी-भरकम तरीके से किया गया था, का एक बार भी उल्लेख नहीं किया।
निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि मोदी जी ‘अच्छे दिन’ से अब ‘अच्छे भाषण’ की ओर आगे बढ़ चुके हैं।
-रचित सेठ
मनोज झुनझुनवाला ने इसका हिन्दी में अनुवाद किया है
Comments
हिन्दुत्व का नाम लबो पे सजाए हैं
हाथो में इनके खून के कितने निशान हैं
जो लोग आज अमन का झण्डा उठाए है !
रेहान जैदी