लगा के आग शहर को, ये बादशाह ने कहा
उठा है दिल में तमाशे का आज शौक़ बहुत
झुका के सर को सभी शाह-परस्त बोल उठे
हुज़ूर शौक़ सलामत रहे, शहर और बहुत !
इस लेख के उपलिखित शीर्षक को पढ़ कर
घबराइए नहीं, क्योंकि यह एक व्यंग्य है, पर यही नोटबंदी की सच्चाई भी है। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने ऐसी सत्यपूर्ण ज़िम्मेदारी कभी नहीं ली, पर "दिल को बहलाने को
' ग़ालिब ' ये ख्याल अच्छा है.... !" नोटबंदी द्वारा मोदी जी ने जनता
को जिस तरह से सताया है,
उस महा-धोखे की भरपाई, इतिहास
में शायद ही कोई कर
सके। जिस तरह से मोहम्मद बिन
तुग़लक़ अपनी सनक भरी योजनाओं के लिए जनता
के हितों से खिलवाड़ करता
था , उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की
125 करोड़ जनता को नोटबंदी के
आनन - फ़ानन भरे फैसले से सस्ती राजनैतिक
वाहवाही बटोरने के लिए ठग
लिया है। नोटबंदी के बाद तो
अब सनकी मोहम्मद बिन तुग़लक़ भी सोच रहा
होगा कि उससे बड़ा
सनकी अब भारत की
धरती पर अवतरित हो
गया है !
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की वार्षिक रिपोर्ट
ने अब बिलकुल साफ़ कर दिया है कि नोटबंदी के पश्चात भारतवासियों ने अपना सारा पैसा
(99%) नगदी व्यवस्था में वापस कर दिया है।
नोटबंदी के कारण ₹15.45 लाख करोड़ का नगद अमान्य घोषित हुआ था, पर भारत के नागरिकों
ने उसमे से ₹15.28 लाख करोड़ की राशि लौटा दी।
यानी मात्र ₹16000 करोड़ ही आर्थिकतंत्र में वापस ना आ सके। समझने वाली बात यह
है कि इन ₹16000 करोड़ को खोजने के लिए भाजपा सरकार ने अपना पूरा सरकारी तंत्र झोक दिया।
कुल ₹25391 करोड़ तो सिर्फ संचालन और नए नोट छापने में ही लग गए। किसी भी पाँचवी कक्षा
के बच्चे से भी अगर हम इस साधारण गणित का उत्तर पूछेंगे तो वह इसको नुक्सान ही बताएगा।
8 नवंबर , 2016 की रात जब महान शक्तिशाली,
राजनैतिक सूझ-बूझ से ओत-प्रोत, प्रशासकीय अनुभव से लैस मोदी जी ने यह सपने में भी नहीं
सोचा होगा, कि जब वह नोटबंदी का यह ‘विशालकाय हवन’ संपन्न करेंगे तो इसका परिणाम इतना
उल्टा निकलेगा ।
नोटबंदी
का सबसे बड़ा झूठ तो प्रधानमंत्री जी ने लाल क़िले की प्राचीर से इस साल बोल दिया था।
उन्होंने ना पचने वाला एक ऐसा सफ़ेद झूठ इतनी बेबाक़ तरीके से बोला की 'झूठ' पर अध्ययन
करने वाले बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक और पेशेवर चिकित्सक भी शरमा जाए। उन्होंने यह दावा
किया कि नोटबंदी के बाद, ₹3 लाख करोड़ अर्थव्यवस्था में लौट आये है ! अब ₹16000 करोड़
के आधिकारिक खुलासे के बाद, मोदी जी अभी तक मौन हैं । और उनके वित्तमंत्री जेटली जी
फिर एक अच्छे विधिशास्त्र के विद्यार्थी की तरह कानूनी तर्क -वितर्क दिए जा रहें हैं
।
नोटबंदी
को लेकर सरकार के प्रवक्ता समय-समय पर, वस्तुस्थिति के मुताबिक़ अपने लक्ष्य और उद्देश्य
एक लटकन (पेंडुलम) के मुताबिक झुलाते रहे, और देश की 125 करोड़ जनता इस तमाशे को झेलती
रही। 8 नवंबर , 2016 को रात्रि के 8 बजकर 20 मिनट पर
जब नोटबंदी का भूचाल हमारे ऊपर गिरा, तब इसका उद्देश्य - काले धन को ख़त्म करना व नकली
नोटों से चल रहे आतंकवाद और नक्सलवाद के विनाशकारी धंधे की कब्र खोदना था। नोटबंदी से ना काला धन ख़त्म हुआ और न ही नकली नोट,
ना आतंकवाद का घिनौना चेहरा और न ही नक्सलवाद की साजिशें ! गौर फरमाने वाली बात है की नोटबंदी के बात यह है कि नवम्बर 2016 के बाद हुई
36 बड़े आतंकवाद हमलों में, जम्मू-कश्मीर में अकेले, 46 लोगों की जान चली गयी और 58
जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी । इस फ़ैसले के बाद हुए 13 घातक नक्सली हमलों में
81 लोगो की जाने गयी व 69 जवान शहीद हो गए।
नोटबंदी की कथा का एक और अध्याय यह
है कि ,उसके लागू होने के कुछ ही हफ़्तों बाद, भाजपा की गिरगिट-रूपी सरकार ने यह कहा
कि यह 'महान कार्य ' उसने देश "कैश लेस"
बनाने के लिए किया, जिससे की ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपने डेबिट-क्रेडिट कार्ड और टेक्नोलॉजी
के अन्य माध्यमों से भुक्तान कर सके। 'डिजिटल
इंडिया' को प्रोत्साहन देना तो सिर्फ एक बहाना साबित हुआ है, असल में नोटबंदी की भीषण
विफलता को जो बचाना था। रिज़र्व बैंक की वार्षिक
रिपोर्ट ने इस दावे का भी पर्दाफ़ाश कर दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक 'डिजिटल ट्रांज़ैक्शन्स
' दिसंबर 2016 के महीने पर तो बढ़ें पर मार्च 2017 के आते आते वही पुराने स्तर पर आ
गिरे। ज़ाहिर है की नोटबंदी के दौरान तो लोगो ने अपने कार्ड और मोबाइल भुगतान के माध्यमों
का इस्तेमाल किया, क्योंकि नगद कम था, पर इतने प्रचार भरे 'डीजी धन मेलों ' और 'भीम
ऐप ' होने के बावजूद - खरे नगद पर से अपना नाता नहीं तोड़ा !
मोदी जी की महान सरकार ने फिर भी हार
नहीं मानी। उन्होंने कहा की नोटबंदी का एक और लक्ष्य है- ज़्यादा से ज़्यादा लोगो को संगठित क्षेत्र की मुख्यधारा में लाकर टैक्स का
फैलाव बढ़वाना। यह भी अच्छा मज़ाक है , सी ऐ
जी की रिपोर्ट ही इस दावे का भंडाफोड़ करती है।
सरकार कह रही है की इस साल अगस्त तक 2.82 करोड़ लोगो ने आयकर विभाग को अपना कर
दाखिल किया, पर हाल ही की सी ऐ जी की रिपोर्ट में कहा गया है की पिछले साल (2015-16) इससे अधिक-
3.98 करोड़ लोगो ने आयकर विभाग को अपना कर दाखिल किया था।
नोटबंदी
न
सिर्फ
एक
आर्थिक
त्रासदी
है
अपितु
एक
सामाजिक
त्रासदी
भी
है।
देश
की
अर्थव्यवस्था
में
90 % योगदान
देने
वाला
अनौपचारिक-असंगठित
क्षेत्र
नोटबंदी
से
सबसे
ज़्यादा
प्रभावित
हुआ
था। किसानों के
पास
नयी
फसल
बोने
के
पैसे
नहीं
थे,
ग्रामीण
भारत
में
हाहाकार
मचा
हुआ
था। गलियों में सामान
बेचने वाले, फेरीवाले, रेहड़ी पटरी वाले, खाने-पीने के खोमचे
, बढ़ई, नाई, धोबी , कारीगर, बिजली कारीगर, रिपेयरमैन, प्लंबर, पोर्टर एवं अन्य कारीगर, कपड़े के व्यापारी, किराना
दुकान मालिक, बेकरी, सब्जीवाले और सब्जी
के व्यापारी, अनाज के व्यापारी और
विक्रेता, छोटे व्यापारी
एवं दुकानदार आदि सभी इस फैसले से
प्रभावित हुए थे। 100 से अधिक लोगों
की लाइनों में लगकर जान चली गयी थी- वह चाहे तनावग्रस्त अवस्था में दिल का दौरा पड़ने
से हुई हो या अस्पतालों
में भर्ती रोगियों को समय पर
उपचार न मिलने की
वजह से हुई हो
! इन सब परिवारों को
भाजपा सरकार ने मुआवज़ा देना
तो दूर संसद में शोक संवेदनाये भी नहीं प्रदान
की।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह
ने
संसद में कहा था की नोटबंदी
"संगठित लूट" और "कानूनी डाका" है , जिससे की हमारी आर्थिक
व्यवस्था को बड़ा धक्का
लगेगा। आज
डॉ मनमोहन सिंह की वह बात
सच हो गयी क्योंकि
भारत की आर्थिक गति
अब मंद पड़ गयी है। इसका ज़िम्मेदार
केवल
एक
व्यक्ति
ही है क्योंकि उसने अपने
व्यक्तिगत
विकास
के
लिए
देश
को
आर्थिक
बर्बादी
की
राह
पर
छोड़
दिया
है।
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